Biography of rani laxmi bai in hindi in short. Rani Laxmi Bai Biography In Hindi 2022-12-17
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रानी लक्ष्मीबाई एक ऐसी महिला थी जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अपनी जान भी खतरे में डालकर भारत की स्वतंत्रता के संग्राम में अपना योगदान दिया।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को महाराष्ट्र के जयपुर में हुआ था। उनके पिता कुंजबाई वाजपेयी थे जो कि महाराष्ट्र के राजपाल थे। रानी लक्ष्मीबाई को स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े सभी विषयों से अच्छी तरह से जानकारी थी और वे अपने जीवन भर इसकी संस्थापना करने में लगी रहीं।
1857 में भारत की स्वतंत्रता संग्राम में रान
Rani Laxmi Bai Biography in Hindi
तथा उसे अन्याय का दृढ़तापूर्वक सामना करना सिखाया. रानी लक्ष्मीबाई की शिक्षा Rani Laxmibai Education पेशवा बाजीराव के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे. कालपी में भी रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ. रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से लड़ाई राजा गंगाधर राव के निधन के बाद झाँसी पर ब्रिटिश हुकूमत की नजर पड़ी. इस सेनामें महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया. लेकिन नियति को यह कहाँ मंजूर था कि वह साधारण स्त्रियों की तरह वह पुत्र का सुख पाए. अपनी सेना में रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं को भी शामिल किया और उन्हें लड़ाई लड़ने के लिए प्रशिक्षण भी दिया.
उनकी शिक्षा—दीक्षा में पढाई के साथ—साथ आत्म—रक्षा, घोड़ेसवारी, निशानेबाजी और घेराबंदी का प्रशिक्षण भी शामिल था उन्होंने अपनी सेना भी तैयार की थी. ब्रिटिश हुकूमत से लड़ाई लड़ने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने एक स्वयंसेवक सेना का गठन किया. लक्ष्मी बाई झांसी की रानी थी। इसके बारेमे भी पढ़िए :- Conclusion— आपको मेरा Rani Laxmi Bai Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। लेख के जरिये हमने rani laxmi bai slogan और jhansi ki rani history से सबंधीत सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।. Rani Laxmi Bai Biography in Hindi — दोस्तों हमारे देश में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है. रानी लक्ष्मीबाई के पिता अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सेवक थे.
विवाह करने के बाद ही मणिकर्णिका का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया. बाद में राव इंदौर शहर में बस गये थे। और उन्होंने अपने जीवन का बहुत समय अंग्रेज सरकार को मनाने एवं अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में व्यतीत किया था। उनकी मृत्यु 28 मई, 1906 को 58 वर्ष में हो गयी. इसके अलावा और भी कि तरह के सवाल लोगों के मन में उठते हैं. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में बेगम हजरत महल, अंतिम मुगल सम्राट की बेगम जीनत महल, स्वयं मुगल सम्राट बहादुर शाह, नाना साहब के वकील अजीमुल्ला शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह और तात्या टोपे जैसे लोगों ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया. रानी ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया ताकि वे अपने लक्ष्य में सफल हो सके। वही रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने इस प्रकार गठित एक विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी. इस बीच, अंग्रेज रानी लक्ष्मीबाई के पीछे ग्वालियर भी गए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के निकट कोटा में एक बार फिर रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दोनों हाथों में तलवार लेकर अंग्रेजी सेना से खूब युद्ध किया। इसी बीच अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई को भाले से मार डाला, जिससे उनके शरीर से काफी पानी बहने लगा। इसके बावजूद रानी लक्ष्मीबाई युद्ध करती रहीं, लेकिन अत्यधिक रक्तस्राव के कारण जब वह कमजोर हो गईं तो एक अंग्रेज ने रानी लक्ष्मीबाई पर तलवार से हमला कर दिया। इससे रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गईं और घोड़े से नीचे गिर गईं। इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक उन्हें पास के एक मंदिर में ले गए, जहां रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। रानी लक्ष्मीबाई की अंतिम इच्छा थी कि उनका शरीर अंग्रेजों के हाथ न लग जाए। यही कारण है कि सैनिकों ने मंदिर के पास रानी लक्ष्मीबाई के शव का अंतिम संस्कार कर दिया। इस तरह 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई इस दुनिया से चली गईं। Read More: आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी कैसे लेगी आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं ,यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कर सकते हैं. इस बीच अंग्रेज रानी लक्ष्मीबाई के पीछे-पीछे ग्वालियर तक भी पहुँच गए.
और आज भी वह करोड़ों लोगों की प्रेरणा है. जब रानी लक्ष्मीबाई चार वर्ष की थी तभी उनकी माता भागीरथी का निधन हो गया था. नतीजा यह हुआ कि लक्ष्मीबाई का गर्भपात हो गया. रानी लक्ष्मीबाई को अस्त्र-शस्त्र चलाना बचपन से ही पसंद था. यह देखते हुए रानी लक्ष्मीबाई के पिता उन्हें अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे.
रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय (जन्म, परिवार, शिक्षा, संघर्ष, विवाह, फिल्म, मृत्यु)
हालाँकि पुत्र गोद लेने के अगले ही दिन 21 नवंबर 1853 को राजा गंगाधर राव का निधन हो गया. महज 23 की उम्र में जिस तरह से रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश साम्राज्य के सैनिकों से लड़ाई लड़ी, उसे देखकर अंग्रेज अफसर भी हैरान रह गए. यहीं कारण है कि सैनिकों ने मंदिर के पास ही रानी लक्ष्मीबाई के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. इससे रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गई और घोड़े से नीचे गिर पड़ी. अंग्रेजों ने उस बच्चे को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया. उनका नाम मणिकर्णिका था और उन्हें प्यार से लोग मनु बुलाते थे। ऐसा और ज्ञान पाना चाहते हैं? जिसे रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु कब और कैसे हुई?. जब रानी लक्ष्मीबाई अपने पिता के साथ उनके दरबार में जाने लगी तो वह भी बाजीराव के बच्चों शिक्षा हासिल करने लगी.
Rani Lakshmi bai Biography In Hindi (रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी) Biography In Hindi राजा महाराजा
क्युकी वे पुरुष पोषक में थी। उन्हें अंग्रेजी सैनिक पहचान नही पाए और उन्हें छोड़ दिया. ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी छोटी सेना के साथ अंग्रेजो का मुकाबला किया. उनके पुत्र की मृत्यु 3 माह की अवस्था में हीं हो गई. पहले पुत्र की असमय मृत्यु और फिर माँ न बनने का दुःख सहने के बावजूद यह वीरांगना अपने कर्तव्य पथ से एक पल के लिए भी नहीं डिगी. इसलिए बाबा गंगादास ने अपनी कुटिया को हीं चिता का रूप दिया और अपनी कुटिया में में हीं उनका अग्निसंस्कार किया.
उस समय तो रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी का किला छोड़ रानीमहल में चली गई, लेकिन उन्होंने अंग्रेजो से लड़ाई लड़ने का फैसला किया. रानी लक्ष्मी बाई की तलवार का वेट 4 फुट लम्बी और उससे सेकड़ो दुश्मनो के सिर हुए थे। 3. परन्तु रानी ने अपना धैर्य और सहस नहीं खोया और बालक दामोदर की आयु कम होने के कारण राज्य—काज का उत्तरदायित्व महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं पर ले लिया था। उस समय भारत में लॉर्ड देलहाउसि गवर्नर उस समय यह नियम था कि शासन पर उत्तराधिकार तभी होगा, जब राजा का स्वयं का पुत्र हो, यदि पुत्र न हो तो उसका राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी में मिल जाएगा। राज्य परिवार को अपने खर्चों हेतु पेंशन दी जाएगी. यहां रानी लक्ष्मीबाई की चंचलता ने सबका मन मोह लिया था. लगभग 200 साल होने जा रहे हैं, इस मर्दानी के जन्म लिए…. उस समय रानी लक्ष्मीबाई झांसी का किला छोड़कर रानी महल चली गईं, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों से लड़ने का फैसला किया। रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए एक स्वयंसेवी सेना का गठन किया। रानी लक्ष्मीबाई ने भी अपनी सेना में महिलाओं को शामिल किया और उन्हें युद्ध लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया। ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में बेगम हजरत महल, अंतिम मुगल बादशाह की बेगम जीनत महल, खुद मुगल बादशाह बहादुर शाह, नाना साहब के वकील अजीमुल्ला, शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दन सिंह और तात्या टोपे जैसे लोगों ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया। Read More: मार्च 1958 में ब्रिटिश सेना ने झांसी को चारों तरफ से घेर लिया। ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी छोटी सी सेना से अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बेटे को पीठ पर बांधकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। हालांकि, जब विशाल ब्रिटिश सेना ने किले को पूरी तरह से घेर लिया, तब रानी लक्ष्मीबाई कालपी चली गईं। जानिए कौन थीं गंगूबाई काठियावाड़ी, जिन्होंने नेहरू से किया था शादी का प्रस्ताव रानी लक्ष्मीबाई कालपी में तात्या टोपे से मिलीं। रानी लक्ष्मीबाई के बाद अंग्रेज भी कालपी पहुंचे। कालपी में भी रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ था। हालांकि यहां रानी लक्ष्मीबाई की सेना को काफी नुकसान हुआ। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने हार नहीं मानी और तात्या टोपे के साथ मिलकर रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया. उसका कहना था कि महाराज गंगाधर राव नेवालकर और महारानी लक्ष्मीबाई कीअपनी कोई संतान नहीं हैं। उसने इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया.
रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मनु और मणिकर्णिका था। 5. रानी लक्ष्मीबाई की अंतिम इच्छा थी कि उनका शव अंग्रेजों के हाथ ना लग पाए. ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई की देखभाल करने वाला घर पर कोई नहीं था. लक्ष्मी बाई की सहेली की बार करे तो वह नाना के साथ ही खेलती थी उसके अलावा बरछी, ढाल, कृपाण और कटारी उनकी सहेलिया थी। 6. कालपी में रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे से मिली. रानी लक्ष्मीबाई का विवाह Rani Laxmibai Marriage धीरे-धीरे समय बीतता गया और जब रानी लक्ष्मीबाई 13 वर्ष की हुई तो साल 1842 में उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े ही धूम-धाम से किया गया. इस बालक का नाम आनंद राव था, जिसे बाद में बदलकर दामोदर राव रखा गया। इसके बारेमे भी पढ़िए :- रानी लक्ष्मी बनी उत्तराधिकारी — 21 नवम्बर, सन 1853 में महाराज गंगाधर राव नेवलेकर की मृत्यु हो गयी, उस समय रानी की आयु मात्र 18 वर्ष थी.
हालाँकि जब अंग्रेजो की विशाल सेना ने किले को पूरी तरह से घेर लिया तो रानी लक्ष्मीबाई कालपी चली गई. रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 दिन हुआ था। 2. आखिर रानी लक्ष्मीबाई इसे कैसे सहन करती. तब वहाँ के पेस्वा ने परिस्थिति को समझ कर उन्हें शरण दी और अपना सैन्य बल भी प्रदान किया था। 22 मई, 1858 को सर ह्यू रोज ने काल्पी पर आक्रमण कर दिया, तब रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और रणनीति पूर्वक उन्हें परास्त किया और अंग्रेजो को पीछे हटना पड़ा. उन्होंंने नाना को टोकते हुए कहा कि वह हाथी की सवारी करना चाहती हैं। इस पर नाना ने उन्हें सीधे इनकार कर दिया। उनका मानना था कि मनु हाथी की सैर करने के योग्य नहीं हैं. लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने हार नहीं मानी और तात्या टोपे के साथ मिलकर रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और नाना साहेब को पेशवा बनाने की घोषणा की.
रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी Rani Laxmi bai biography in hindi essay history lines
परन्तु रानी, दामोदररावके साथ अंग्रेजों से बचने में सफल हो गयी. इस समय अंग्रेज सरकार झाँसी को हथियाने में कामयाब रही और अंग्रेजी सैनिकों नगर में लूट—फ़ाट भी शुरू कर दिया. क्रूर अंग्रेज भी यह समझ गए थे कि बिना छल किये, वो ये लड़ाई नहीं जीत सकते हैं. कुछ समय पश्चात् सर ह्यू रोज ने काल्पी पर फिर से हमला किया और इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा था। युद्ध में हारने के पश्चात् राव साहेब पेश्वा , बन्दा के नवाब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य मुख्य योध्दा गोपालपुर में एकत्र हुए. मार्च 1958 में ब्रिटिश सेना ने झाँसी को चारो तरफ से घेर लिया. ब्रिटिश इंडिया के गवर्नर जनरल डलहौजी ने दामोदर राव को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और झाँसी का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में करने का फैसला किया.